वहीं विश्व कप का फ़ाइनल मुक़ाबला लंदन के लॉर्ड्स मैदान में 14 जुलाई को खेला जाएगा.
गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा और
राज्यसभा में भाषण देते हुए कश्मीर का उल्लेख किया है जो कि मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की कश्मीर नीति को स्पष्ट करता है.
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में कश्मीर नीति में कई तरह के ऊहापोह दिखे थे. हालांकि, इस भाषण के बाद लगता है कि नई सरकार एक नई नीति के साथ कश्मीर मुद्दे पर ध्यान देगी.
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में कश्मीर को लेकर एक उचित और ठोस नीति सामने नहीं आई. इसकी एक वजह ये भी थी कि पीडीपी और बीजेपी के राजनीतिक हित अलग-अलग रहे.
बीजेपी-पीडीपी गठबंधन में एक पार्टी कश्मीर नीति को नरम अलगाववाद की ओर खींच रही थी.
वहीं, दूसरी पार्टी किसी भी तरह के समझौते के लिए तैयार नहीं थी और चरमपंथ, अलगाववाद के प्रति कठोर रुख़ को ही एकमात्र विकल्प माना.
इसका नतीजा ये हुआ कि दोनों में से एक भी नीति ठीक ढंग से लागू नहीं की गई. दोनों पार्टियों के रुख़ में जारी विरोधाभास ने कश्मीर को अंधकार की ओर धकेल दिया.
लेकिन अमित शाह का भाषण कश्मीर पर बीजेपी की नई नीति के बारे में बताता है.
इस नीति के दो तीन पहलू साफ़ हैं. पहला पहलू ये है कि कश्मीर में चरमपंथ के ख़िलाफ़ ऑपरेशन ऑल आउट जारी रहेगा.
दूसरा पहलू ये है कि चरमपंथियों के ख़िलाफ़ सशस्त्र बलों का काइनेटिक ऑपरेशन जारी रहेगा.
इसके साथ ही एनआइए हुर्रियत समेत दूसरे अलगाववादी संगठनों के ख़िलाफ़ अपनी जांच जारी रखेगी ताकि चरमपंथियों को मिलने वाला आर्थिक, लॉजिस्टिकल और वैचारिक समर्थन कम हो सके.
लेकिन अमित शाह के भाषण में अटल बिहारी वाजपेयी के नारे कश्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियत का प्रयोग करना सबसे चौंकाने वाली बात थी.
राजनीतिक दलों और तमाम दूसरे पक्षों ने समय-समय पर कश्मीर को लेकर वाजपेयी की नीति को सराहा है.
हालांकि, अब ऐसा लगता है कि वाजपेयी का तरीक़ा वर्तमान सरकार की कश्मीर नीति के लिए एक जुमले की तरह हो गया है.
गृह मंत्री की कश्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियत की परिभाषा अटल बिहारी वाजपेयी की कड़ी मेहनत से बातचीत के रास्ते से विवाद का हल निकालने की नीति से बिलकुल अलग है.
गृह मंत्री ने अपने भाषण में साफ़ किया है कि अलगाववादियों से किसी तरह की बातचीत नहीं हो सकती.
अपनी हालिया कश्मीर यात्रा में उन्होंने क्षेत्रीय पार्टियों जैसे नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी से मिलना भी ठीक नहीं समझा.
गृह मंत्री के भाषण को सुनकर ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार ने कश्मीर में अच्छे, बुरे और ख़राब तत्वों की पहचान कर ली है.
इसमें से सबसे ख़राब लोगों से ऑपरेशन ऑल आउट निपटेगा और एनआइए की जांच जारी रहेगी.
इसके बाद बुरे लोगों पर दबाव डाला जाएगा, उन्हें मनाया जाएगा और अच्छाई की ओर जाने वाले रास्ते से भटकने पर सज़ा भी दी जाएगी.
इसके साथ ही अच्छे लोगों को विकास योजनाओं से लाभान्वित किया जाएगा.
शाह ने अपनी स्पीच में संकेत दिए हैं कि सरकार विकास और प्रशासन के लिए विशेष क़दम उठाना चाहती है.
इस बात की अपेक्षा करना समझदारी नहीं होगी कि चरमपंथियों और अलगाववादियों के प्रति कठोर रुख़ अपनाने से जम्मू-कश्मीर में दीर्घकालिक शांति आएगी.
लेकिन ऐसा लगता है कि नई सरकार कश्मीर को लेकर अपने पहले कार्यकाल की तुलना में बेहतर नीति के साथ आगे बढ़ना चाहती है.
हालांकि, कश्मीर में बीते कुछ सालों में ज़मीनी स्थितियां बहुत तेजी से बदल गई हैं.