Friday, November 22, 2019

12 और कंपनियों की हिस्सेदारी बेचेगी सरकार?

नवभारत टाइम्स में छपी ख़बर के अनुसार केंद्र सरकार बीपीसीएल और शिपिंग कॉर्पोरशन समेत पांच पब्लिक सेक्टर यूनिट्स में विनिवेश के बाद 12 अन्य सरकारी कंपनियों की हिस्सेदारी बेचे की तैयारी में है.
इन कंपनियों में गेल (गैस अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया लिमिटेड), नाल्को (नेशनल एल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड) , इंडियन ऑयल, एनटीपीसी और भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड जैसी नामी शामिल हैं.
अख़बार सूत्रों के हवाले से लिखता है कि सरकार इसमें अपनी हिस्सेदारी 51% तक कम कर सकती है.
रिपोर्ट के अनुसार इन कंपनियों के विनिवेश का ऐलान दिसंबर-जनवरी में किया जा सकता है.
अमर उजाला में ख़बर है कि भारतीय नौसेना को जल्दी ही पहली महिला पायलट मिल जाएगी.
सब लेफ़्टिनेंट शिवानी नेवी के लिए फ़िक्स्ड विंग ड्रोनियर सर्विंलांस प्लेन उड़ाएंगी. ड्रोनियर 228 प्लेन को हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) ने तैयार किया है. इसे कम दूरी के समुद्री मिशन पर भेजा जाता है.
यह अडवांस सर्विलांस रेडार, इलेक्ट्रॉनिक सेंसर और नेटवर्किंग जैसी कई ख़ूबियों से लैस है. इसी विमान प्लेन शिवानी भारतीय समुद्र क्षेत्र पर निगरानी रखेंगी.
भारतीय नौसेना में महिला पायलट के तौर पर करने जा रही शिवानी की पोस्टिंग कोच्चि में होगी.
टेस्ट मैचों को क्रिकेट का सबसे 'एलीट' रूप माना जाता है. लोग टेस्ट मैचों को पारंपरिक, ओल्ड-फ़ैशन्ड और असली क्रिकेट मानते हैं. टेस्ट मैच यानी खिलाड़ियों की सफ़ेद ड्रेस, लाल रंग की बॉल और पांच दिन चलने वाला गेम.
विशेषज्ञ भी मानते हैं कि असली क्रिकेट तो टेस्ट क्रिकेट ही है. बल्लेबाजों और गेंदबाजों दोनों का असली दमखम भी टेस्ट मैच में उनके प्रदर्शन को देखने के बाद ही पता चलता है.
हालांकि असली क्रिकेट माने जाने के बावजूद टेस्ट क्रिकेट के सामने कई चुनौतियां सामने आने लगीं. इसकी बड़ी वजह थी वन डे और टी-20 मैचों की बढ़ती लो
वैसे तो टेस्ट मैच आमतौर पर रेड यानी लाल गेंद से खेले जाते हैं लेकिन डे-नाइट टेस्ट मैचों में गेंद का रंग बदलकर गुलाबी हो जाता है.
ऐसा इसलिए क्योंकि डे-नाइट मैचों में प्राकतिक रोशनी की जगह कृत्रिम रोशनी का सहारा लेना पड़ता है और इसीलिए पिंक बॉल का इस्तेमाल किया जाता है.
फ़्लडलाइट में बैट्समैन के लिए रेड बॉल को देखना मुश्किल होता है जबकि पिंक बॉल आसानी से देखी जाती है. यही वजह है कि डे-नाइट टेस्ट मैचों के लिए पिंक बॉल का इस्तेमाल किया जाता है.
ये पहला मौका है जब भारत में किसी अंतरराष्ट्रीय मैच में पिंक बॉल का इस्तेमाल किया जा जाएगा. ऐसे में पिंक बॉल और क्रिकेट से जुड़े कई दिलचस्प सवाल भी उठ रहे हैं.
बीबीसी ने क्रिकेट के जानकारों से बात की और मैच में पिंक बॉल की भूमिका और डे-नाइट मैच से जुड़े कुछ सवाल पूछे.
कप्रियता.
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैचों में 1970 से वनडे मैच शुरू हए और 2000 के बाद टी-20 मैच. टी-20 मैच तो आने के बाद तुरंत ही लोकप्रिय हो गया था.
इन सबके बाद हाल ही में T10 और 100-बॉल क्रिकेट ने टेस्ट क्रिकेट के सामने और चुनौतियां खड़ी कर दीं. भारत जैसे देशों में टेस्ट मैचों के दर्शक भी कम होने लगे.
वक़्त के साथ-साथ क्रिकेट भी बदल गया है. 2015 से डे-नाइट मैच खेले जाने लगे. पहला डे-नाइट मैच एडिलेड के ओवल में न्यूज़ीलैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेला गया था. इसमें न्यूज़ीलैंड ने तीन विकेट से जीत हासिल की थी. तब से लेकर अब तक कुल 11 डे-नाइट मैच खेले जा चुके हैं.
भारत अपना पहला डे-नाइट टेस्ट मैच शुक्रवार को कोलकाता के इडेग-गार्डेड स्टेडियम में खेलेगा. ये मैच बांग्लादेश के साथ चल रही टेस्ट सिरीज़ का हिस्सा है.
ये मैच शुक्रवार को दोपहर एक बजे शुरू होगा. डे-नाइट टेस्ट मैचों की एक ख़ास बात ये भी होती है कि ये पिंक यानी गुलाबी बॉल से खेले जाते हैं.

Tuesday, September 17, 2019

एक साल पहले जब धारा 377 को ख़त्म करने की ख़बर आई तो मोनिशा अजगावकर रो पड़ी थीं.

इमरान ख़ान ने अलजज़ीरा से कहा, "मुझे ख़ुशी होती है जब वे मुझे यू टर्न वाला प्रधानमंत्री कहते हैं. केवल मूर्ख लोग ही यू टर्न नहीं लेते. केवल एक मूर्ख ही रास्ते में आई दीवार पर सिर पटकता रहता है. एक बुद्धिमान व्यक्ति अपनी रणनीति को तुरंत सुधार लेता है."
लेकिन क्या उनके यू टर्न का देश पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा?
इमरान ख़ान से जब पूछा गया कि परमाणु हथियार संपन्न दो पड़ोसी देशों के बीच किसी बड़े संघर्ष का ख़तरा मौजूद है, उनका कहना था कि वो निश्चित रूप से मानते हैं कि भारत के साथ युद्ध की संभावना है.
इमरान ख़ान ने कहा कि कश्मीर से अनुच्छेद 370 निष्प्रभावी किए जाने के बाद भारत से बातचीत का सवाल ही पैदा नहीं होता है. भारत अगर कश्मीर पर बातचीत नहीं करता है तो पाकिस्तान क्या करेगा?
इस सवाल के जवाब में इमरान ख़ान ने कहा, ''दूसरे विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र बना और हमने यहीं कश्मीर के मुद्दे को उठाया है और उम्मीद है कि कुछ न कुछ समाधान निकलेगा. हम दुनिया के सभी ताक़तवर देशों से संपर्क कर रहे हैं. अगर कश्मीर का मुद्दा नहीं सुलझा तो इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा. जिन देशों को भारत बड़ा बाज़ार दिख रहा है और वो व्यापार के हिसाब से सोच रहे हैं, उन्हें इस बात का अहसास नहीं है कि अगर वो हस्तक्षेप नहीं करेंगे तो इसका असर न केवल भारतीय उपमहाद्वीप पर पड़ेगा बल्कि पूरी दुनिया इससे प्रभावित होगी.''
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान और अमरी
मोनिशा अजगावकर भारत की मशहूर समलैंगिक 'वेडिंग फोटोग्राफ़र' हैं. कुछ लोग उनकी गिनती भारत के बेहतरीन 'वेडिंग फोटोग्राफ़र्स' में करते हैं.
मुंबई में पली बढ़ी 30 साल की मोनिशा अजगावकर जब जेजे स्कूल ऑफ़ आर्ट्स में पढ़ाई कर रही थीं तभी उन्हें एहसास हो गया था कि वो समलैंगिक हैं.
केवल कुछ क़रीबी लोग मोनिशा के इस राज़ को जानते थे. चार साल पहले जब उनके समलैंगिक होने का ज़िक्र कहीं छपा तो उनके परिवार को इसके बारे में पता चला. तब से वो अकेली ही रहती हैं. परिवार से कोई बातचीत नहीं.
हाल ही में मोनिशा अजगावकर ने  कम्युनिटी के लोगों, जो अब तक सामने नहीं आए हैं और असमंजस से जूझ रहे हैं, के लिए एक फोटो सीरीज़ 'ब्लॉसम' बनाई जो दुनिया भर में बहुत पसंद की गई.
मोनिशा कहती हैं, "मुझे इस कॉन्सेप्ट का ख्याल जून में मनाए जाने वाले प्राइड मंथ के दौरान आया जब मैं दुनिया भर से  समुदाय के लोगों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार की ख़बरें सुन रही थी."
भावुक हुई मोनिशा आगे कहती हैं, "ऐसा नहीं है कि किसी ट्रांसजेंडर ने खुदकुशी कर ली हो बल्कि लोग उनके घरों में जाकर उन्हें जान से मार रहे थे. करीबन 12 से 15 ख़बरें उस दौरान मैंने पढ़ी जिसने मुझे हिला कर रख दिया. तब मैंने अपने काम के ज़रिए ट्रांसजेंडर लोगों के लिए कुछ करने की ठानी. और इस कॉन्सेप्ट के बारे में सोचा. मैं चाहती हूं कि लोग अपने बारे में सुरक्षित महसूस करें, अपने शरीर से प्यार करें और अपने बारे में खूबसूरत महसूस करें."
का के बीच शांति वार्ता टूटने के सवाल पर एक दिन पहले रशिया टुडे से साक्षात्कार में इमरान ख़ान ने इस बात से इनकार किया कि पाकिस्तान चरमपंथी संगठनों को इसलिए शह देता है ताकि पश्चिम देशों से उसे सहायता के नाम पर फ़ंड मिल सके.
उन्होंने कहा, ''जब अमरीका के नेतृत्व में पाकिस्तान ने चरमपंथ के ख़िलाफ़ लड़ाई में हिस्सा लिया तो उसके 70,000 लोग मारे गए और इस दौरान क़रीब 100 अरब डॉलर का नुक़सान हुआ जबकि अधिक से अधिक हमें 20 से 30 अरब डॉलर की सहायता मिली.''
उन्होंने कहा, "इस युद्ध में पाकिस्तान को जितना जानमाल का नुक़सान हुआ. उतना नुक़सान किसी और देश को नहीं उठाना पड़ा. जहां तक तालिबान की बात है इस समय पाकिस्तान की भूमिका अफ़ग़ानिस्तान में शांति स्थापित करने की है. दुर्भाग्य है कि हमारी सरकारों ने अफ़ग़ानिस्तान के युद्ध में हिस्सा लिया, जो कि हमारा युद्ध नहीं था. मैं इसकी मुख़ालफ़त करता रहा हूं कि जब 9/11 में हमारी कोई भूमिका नहीं है तो हम क्यों ये युद्ध लड़ रहे हैं."

Thursday, August 22, 2019

ما علاقة اللاجئين برفض "قبطانتين ألمانيتين" لأرقى جائزة في باريس؟

أشعلت "القبطانتان" الألمانيتان بيا كليمب وكاررولا راكيتي، مواقع التواصل الاجتماعي بسبب رفضهما أعلى جائزة في مدينة باريس، لشجاعتهما في إنقاذ اللاجئين العالقين في عرض البحر، متهمتين باريس بممارسة "النفاق" فيما يتعلق بمعاملتها مع قضية اللاجئين.
ومنحت مدينة باريس الشابتين أرقى وسام مدني في البلاد لشجاعتهما المتكررة وإصرارهما على إنقاذ المهددين بالغرق وسط معارضة إيطالية شديدة.
وكتبت كليمب في صفحتها في موقع التواصل الاجتماعي، فيسبوك، مخاطبة آن هيدالغو، عمدة باريس قائلةً: "لا نحتاج لسلطات تقرر من هو البطل ومن هو الخارج على القانون".
وكتبت أيضاً: "تريدون منحنا وساماً لأننا ننقذ اللاجئين يومياً في أصعب الظروف، وفي نفس الوقت تصادر الشرطة الفرنسية بطانيات الأشخاص الذين لا مأوى لهم ويعيشون في الشوارع، أثناء قمع الاحتجاجات وتجرِّم المدافعين عن حقوق المهاجرين وطالبي اللجوء".
وقال مكتب رئيس البلدية بباريس لرويترز: "مدينة باريس مستنفرة بالكامل دعماً للاجئين ومساعدتهم في إيجاد المأوى المناسب لهم، وضمان احترامهم والحفاظ على كرامتهم، وإن المكتب سيعاود الاتصال بالقبطانتين".
وتكافح السفن الخيرية منذ أكثر من عام من أجل إحضار المهاجرين الذين تم إنقاذهم من الغرق في البحر إلى الشواطئ الإيطالية، إلا أن "الموقف المتشدد" لوزير داخلية إيطاليا، ماتيو سالفيني ضد الهجرة يحول دون تحقيق ذلك.
واعتقلت كارولا راكيتي في يونيو/ حزيران الماضي لأنها اخترقت الحصار المفروض على سفينة إنقاذ اللاجئين من قبل السلطات الإيطالية، ورست بالسفينة في جزيرة لامبيدوسا الإيطالية الصغيرة وهبط من على متنها عشرات المهاجرين الأفارقة الذين أنقذتهم راكيتي.
فأصدر وزير الداخلية الإيطالي أمراً باعتقالها متهماً إياها بـ "الاتجار بالبشر" ووصفها بالقرصانة التي تشجع على الهجرة غير الشرعية إلى إيطاليا.
ورغم إفراج القاضي عن راكيتي وكليمب، إلا أن التحقيقات ضدهما لا تزال جارية. وفي حال إدانتهما، عليهما دفع مبلغ مليون يورو بحسب القانون الجديد الذي تم إقراره مؤخراً.
إنها المرأة التي أغضبت سالفيني وأحدثت أزمة بين ألمانيا وإيطاليا، وصفها وزير الداخلية الإيطالي بـ " المرأة الألمانية الغنية والبيضاء".
وهي حاصلة على البكالوريوس في العلوم البيئية في المملكة المتحدة. وشاركت الشابة البالغة من العمر 31 عاماً، في حملات استكشافية، سواءً للمنظمات البحثية أو لمجموعة السلام الأخضر البيئية.
انضمت إلى منظمة "سي ووتش" الخيرية التي تقوم بمهام الإنقاذ في البحر المتوسط.
وهي الآن توصف في وسائل الإعلام الألمانية والفرنسية على أنها بطلة يسارية.
ليس لراكيتي حضور قوي في مواقع التواصل الاجتماعي، باستثناء نشر بعض الأخبار عن مهمات الإنقاذ التي تشارك فيها، عبر صفحتيها في تويتر وفيسبوك، وخاصة خلال الأشهر القليلة الماضية.
وفي آخر منشوراتها قالت: "لقد قررت دخول الميناء بمفردي، إنه مجاني ليلاً ".
وأعرب رئيس منظمة سي ووتش "Sea Watch" جوهانس باير، عن دعمه لما تقوم به راكيتي وغرّد في تويتر قائلاً: "أنا فخور بقبطانتنا".

Friday, July 5, 2019

कश्मीर में सरकार की चरमपंथियों के साथ चाय पर चर्चा?

विश्व कप का पहला सेमीफ़ाइनल मैच 9 जुलाई को मैनचेस्टर के ओल्ड ट्रेफ़र्ड मैदान में दोपहर तीन बजे से खेला जाएगा जबकि दूसरा सेमीफ़ाइनल मैच बर्मिंघम के एज़बेस्टन मैदान में खेला जाएगा. दूसरे सेमीफ़ाइनल की एक टीम तय हो चुकी है. वह है मेज़बान इंग्लैंड.
वहीं विश्व कप का फ़ाइनल मुक़ाबला लंदन के लॉर्ड्स मैदान में 14 जुलाई को खेला जाएगा.
गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा और राज्यसभा में भाषण देते हुए कश्मीर का उल्लेख किया है जो कि मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की कश्मीर नीति को स्पष्ट करता है.
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में कश्मीर नीति में कई तरह के ऊहापोह दिखे थे.
हालांकि, इस भाषण के बाद लगता है कि नई सरकार एक नई नीति के साथ कश्मीर मुद्दे पर ध्यान देगी.
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में कश्मीर को लेकर एक उचित और ठोस नीति सामने नहीं आई. इसकी एक वजह ये भी थी कि पीडीपी और बीजेपी के राजनीतिक हित अलग-अलग रहे.
बीजेपी-पीडीपी गठबंधन में एक पार्टी कश्मीर नीति को नरम अलगाववाद की ओर खींच रही थी.
वहीं, दूसरी पार्टी किसी भी तरह के समझौते के लिए तैयार नहीं थी और चरमपंथ, अलगाववाद के प्रति कठोर रुख़ को ही एकमात्र विकल्प माना.
इसका नतीजा ये हुआ कि दोनों में से एक भी नीति ठीक ढंग से लागू नहीं की गई. दोनों पार्टियों के रुख़ में जारी विरोधाभास ने कश्मीर को अंधकार की ओर धकेल दिया.
लेकिन अमित शाह का भाषण कश्मीर पर बीजेपी की नई नीति के बारे में बताता है.
इस नीति के दो तीन पहलू साफ़ हैं. पहला पहलू ये है कि कश्मीर में चरमपंथ के ख़िलाफ़ ऑपरेशन ऑल आउट जारी रहेगा.
दूसरा पहलू ये है कि चरमपंथियों के ख़िलाफ़ सशस्त्र बलों का काइनेटिक ऑपरेशन जारी रहेगा.
इसके साथ ही एनआइए हुर्रियत समेत दूसरे अलगाववादी संगठनों के ख़िलाफ़ अपनी जांच जारी रखेगी ताकि चरमपंथियों को मिलने वाला आर्थिक, लॉजिस्टिकल और वैचारिक समर्थन कम हो सके.
लेकिन अमित शाह के भाषण में अटल बिहारी वाजपेयी के नारे कश्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियत का प्रयोग करना सबसे चौंकाने वाली बात थी.
राजनीतिक दलों और तमाम दूसरे पक्षों ने समय-समय पर कश्मीर को लेकर वाजपेयी की नीति को सराहा है.
हालांकि, अब ऐसा लगता है कि वाजपेयी का तरीक़ा वर्तमान सरकार की कश्मीर नीति के लिए एक जुमले की तरह हो गया है.
गृह मंत्री की कश्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियत की परिभाषा अटल बिहारी वाजपेयी की कड़ी मेहनत से बातचीत के रास्ते से विवाद का हल निकालने की नीति से बिलकुल अलग है.
गृह मंत्री ने अपने भाषण में साफ़ किया है कि अलगाववादियों से किसी तरह की बातचीत नहीं हो सकती.
अपनी हालिया कश्मीर यात्रा में उन्होंने क्षेत्रीय पार्टियों जैसे नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी से मिलना भी ठीक नहीं समझा.
गृह मंत्री के भाषण को सुनकर ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार ने कश्मीर में अच्छे, बुरे और ख़राब तत्वों की पहचान कर ली है.
इसमें से सबसे ख़राब लोगों से ऑपरेशन ऑल आउट निपटेगा और एनआइए की जांच जारी रहेगी.
इसके बाद बुरे लोगों पर दबाव डाला जाएगा, उन्हें मनाया जाएगा और अच्छाई की ओर जाने वाले रास्ते से भटकने पर सज़ा भी दी जाएगी.
इसके साथ ही अच्छे लोगों को विकास योजनाओं से लाभान्वित किया जाएगा.
शाह ने अपनी स्पीच में संकेत दिए हैं कि सरकार विकास और प्रशासन के लिए विशेष क़दम उठाना चाहती है.
इस बात की अपेक्षा करना समझदारी नहीं होगी कि चरमपंथियों और अलगाववादियों के प्रति कठोर रुख़ अपनाने से जम्मू-कश्मीर में दीर्घकालिक शांति आएगी.
लेकिन ऐसा लगता है कि नई सरकार कश्मीर को लेकर अपने पहले कार्यकाल की तुलना में बेहतर नीति के साथ आगे बढ़ना चाहती है.
हालांकि, कश्मीर में बीते कुछ सालों में ज़मीनी स्थितियां बहुत तेजी से बदल गई हैं.

Tuesday, July 2, 2019

加纳每年因“赛科”捕捞损失千万美元

拖网渔船非法捕捞对加纳渔业造成了破坏捕捞,让已经面临过度捕捞困扰的加纳渔业几近崩溃。近日发布的一项最新研究首次对这一现象造成的代价进行了量化。
总部位于伦敦的环境正义基金会(EJF)早前曾估计,2017年,“赛科”(saiko)捕捞——即工业拖网渔船将捕捞到的渔获转运至特制的小船上的做法——渔获总量达到了10万吨左右。
环境正义基金会利用新数据计算发现,这些渔获的海上价值约为4100万到5100万美元。报告称,这些钱相当大一部分都直接流入了以中国公司占绝大多数的渔业公司手中。而这些鱼到港后的售价则达到了5300万到8100万美元,盈利空间高达1200万到3000万美元。
2017年加纳的工业捕捞总量为16.7万吨,其中赛科捕捞占到了10万吨。也就是说,工业拖网渔船的上岸渔获中只有四成是合法的。此外,工业拖网渔船上岸渔获的估计值与(小型)手工渔业捕捞的规模相当,是2014年渔业管理规划中设定的目标(1.85万吨)的9倍之多。
总而言之,上述数据说明,工业拖网渔船对加纳海洋渔业资源的影响是被严重低估的。
加纳非政府组织
 负责人科菲·阿格伯伽也参与了这份报告的撰写。他表示:“‘赛科’捕鱼已经对加纳渔业产生了致命的影响。过去10到15年间,小型渔船的收入已经下降了40%。迫于无奈,如今加纳国内消费的鱼产品中有一多半是进口的。众所周知,即便是采用了最先进的系统,也很难对海上转运进行监控。所以,应该要求所有渔获产品都卸载到授权港口,并记入官方统计数据。”
环境正义基金会(EJF)执行董事史蒂夫·特伦特表示:“‘赛科’捕鱼导致加纳的主要渔业资源快速陷入困境,而当地民众也因此面临贫困和饥饿的双重威胁。这是一场人为的生态危机,当地民众因此被剥夺了生计,深陷收入和粮食安全困境。”
“但是目前可以明确的是,加纳政府目前其实是有能力遏制这项具有极大破坏性的非法活动的。同样明确的是,要避免加纳渔业出现下滑或崩溃,政府必须立刻行动起来。”

上世纪70年代,日本渔民用“さいてい(最低)”这个词来形容被拖网渔船丢弃的“不好的/垃圾”鱼。但是加纳当地居民认为这些顺道捕获的鱼类还是有价值的,所以坚持称之为“赛科”(saiko),意思就是“好的/有用的”鱼。
“赛科”起初只是一种非正式的贸易模式:工业捕捞船将在海上将捕捞到的不想要的渔获贩卖给小渔船上的小贩,用来换取其他一些东西,但是之后却慢慢演变成了一种利润丰厚、高度组织化的非法行业。工业拖网渔船本来只获准捕捞底栖鱼类,但是现在也开始为了“赛科”贸易,专门捕捞沙丁鱼和鲭鱼等小型中上层鱼类。这类鱼在当地消费量很高,而且已经被捕捞到处于生态崩溃的边缘。转运完成后,商贩会将冻成一块块的“赛科”鱼售卖给当地人。
报告称:“通过‘赛科’贸易,工业拖网渔船实际上偷走了属于小型渔船的渔业资源,然后再卖给当地人从中牟利。”
专家警告称,“赛科”渔业会加剧过度捕捞和加纳近海渔业的快速衰败,而近海渔业是200多万当地人赖以为生的一项产业。加纳法律禁止“赛科”捕鱼,违者可能会被处以10万到200万美元的罚款。但是,近来却有人提议在加以监管的情况下,将其合法化。

Tuesday, June 25, 2019

चर्चा में रहे लोगों से बातचीत पर आधारित साप्ताहिक कार्यक्रम

नूर उल हसन का कहना है कि उन्होंने मदद हासिल करने के लिए काफ़ी आवाज़ उठाई लेकिन मदद नहीं मिली. दो साल उन्होंने लाहौर के एक डॉक्टर से राय भी तब उन्हें बताया गया कि उनके ऑपरेशन और इलाज पर दस लाख रुपए तक का ख़र्च आएगा. इतने पैसे उनके पास नहीं थे वै बैठे रह गए.
एक साल पहले जब उनके बारे में ख़बरें प्रकाशित हुईं तो लाहौर के मशहूर लेप्रोस्कोपिक सर्जन डॉक्टर मज़ उल हसन को उनके बारे में जानकारी मिली. डॉक्टर माज़ ने उनसे संपर्क किया और मुफ़्त इलाज करने का भरोसा दिया.
बीबीसी से बात करते हुए डॉक्टर माज़ उल हसन ने बताया कि इलाज के लिए उन्होंने छह महीने पहले नूर उल हसन को प्रोटीन खिलाना शुरू किया.
"इससे पहले उनका वज़न 360 किलो था लेकिन अब मसला ये था कि उन्हें लाहौर कैसे सादिक़ाबाद से लाहौर सड़क के रास्ते से पहुंचने में आठ से नौ घंटे लग ही जाते हैं. इसमें ख़तरा ये था कि इतने ज़्यादा वज़न वाले इंसान में ख़ून जम सकता है. इसलिए उन्हें हवाई एंबुलेंस में लाया गया.
नूर उल हसन ने सोशल मीडिया पर अपना वीडियो साझा करके लोगों से मदद भी मांगी थी. आख़िरकार उन्हें पाकिस्तानी सेना के हेलीकॉप्टर से लाहौर पहुंचा दिया गया.
डॉक्टर माज़ के मुताबिक ये पहली बार है जब पाकिस्तान में मोटापे का कोई मरीज़ एयर एंबुलेंस से लाया गया हो.
डॉक्टर माज़ का कहना है कि जब नूर उल हसन को अस्पताल लाया गया तो उनके सभी अहम अंग सामान्य तौर पर काम कर रहे थे. उन्हें विशेषज्ञ डॉक्टरों की निगरानी में रखा गया.
"मैं जब तक दो सौ प्रतिशत संतुष्ट नहीं होउंगा मैं ऑपरेशन थिएटर के अंदर नहीं जाउंगा."
उनका कहा है कि इससे पहले तीन सौ किलो से अधिक वज़न वाले जिन लोगों को उन्होंने ऑपरेशन किया है वो जवान थे.
"पाकिस्तान में ये अपनी तरह का पहला ऑपरेशन होगा."
डॉक्टर माज़ के मुताबिक नूर अल हसन का ऑपरेशन जिस तरीके से किया जाएगा उसे लेप्रोसोकोपिक सिलियो गैस्ट्रिटॉमी कहा जाता है. ये की होल सर्जरी होती है और इसमें मरीज़ का पेट नहीं चीरा जाता है.
उनका कहना है कि इस ऑपरेशन के दो साल बाद मरीज़ का वज़न डेढ़ से दो सौ किलो तक कम हो जाता है.
"जब नूर उल हसन का वज़न कम हो जाएगा तो उनके जिस्म पर चर्बी लटक जाएगी जिसे प्लास्टिक सर्जरी के ज़रिए काट कर ठीक कर दिया जाएगा. "
डॉक्टर माज़ मानते हैं कि नूर उल हसन का वज़न बढ़ने की प्रमुख वजह उनका सुस्त रवैया ही है.
"जब आप एक ख़ास हद तक वज़न बढ़ा लेते हैं और बिलकुल बैठ जाते हैं तो फिर जिस्म के अंदर जाने वाला सामान्य भोजन भी चर्बी में बदलना शुरू हो जाता है."
दस सालों तक नूर उल हसन जब घर में मोटापे की वजह से क़ैद रहे तो उनकी बीवी और बेटी दूसरों के घरों में काम करके ख़र्चा चलाती रहीं.
उन्हें उम्मीद है कि ठीक होने के बाद नूर उल हसन कोई ऐसा काम ढूंढेंगे जिसमें उन्हें सुस्त न बैठना पड़े.

Monday, June 10, 2019

مظاهرات السودان: الموقف "مرشح للتصعيد واعتذار المجلس العسكري لا يكفي"

تتصاعد وتيرة الأزمة في السودان وذلك بعد مهاجمة قوات الأمن الاثنين الماضي جموع المعتصمين أمام مقر قيادة الجيش بالخرطوم.
ووفقا لصحف عربية، فإن الموقف مُرشّح للتصعيد وإنه لن يكون من السهل العودة إلى طاولة التفاوض، فيما رأى كُتّاب أن اعتذار المجلس العسكري عن فض الاعتصام بالقوة وسقوط عشرات القتلى والجرحى لن يكفي، مطالبين الجيش بالعودة إلى ثكناته.
تقول صحيفة "الخليج" الإماراتية في افتتاحيتها إن عملية فض الاعتصام كانت"الشرارة التي أفضت إلى تطورات الأيام القليلة الماضية، بما فيها توقف الحوار الذي كان قطع شوطاً كبيراً بين قيادة المجلس العسكري الانتقالي وقوى الحرية والتغيير منذ سقوط نظام الرئيس السابق عمر حسن البشير، ورغم أن المجلس عاد وأبدى استعداده للحوار مع كافة القوى السياسية بدون استثناء، وإجراء انتخابات رئاسية خلال تسعة شهور، فإن ذلك لم يحل دون استمرار الأزمة المرشحة لمزيد من التصعيد".
وترى الصحيفة أنه لا مخرج من الأزمة إلا من خلال "الحوار ووضع مصلحة السودان فوق المصالح الحزبية والحسابات السياسية الضيقة، وعدم السماح بدخول البلاد في أتون الفوضى والاضطراب والحرب الأهلية".
وكتب عادل إبراهيم حمد في "العرب" القطرية: "يمكن القول بلا تحفّظ إن المجلس العسكري ليس موضع ثقة قوى مؤثرة في تحالف الحرية والتغيير؛ لذا كان على المجلس أن يتبع نهجاً تفاوضياً يناسب هذه الحالة، وذلك بأن يقدّم مقترحه الخاص بمستويات الحكم الثلاث في (حزمة) متكاملة تحدد حق قوى الحرية والتغيير في تشكيل الحكومة ونسبة التحالف في المجلس التشريعي، في مقابل أن يتولى رئيس المجلس العسكري رئاسة مجلس السيادة المقترح الذي يتشكل مناصفة بين العسكريين والمدنيين".
ويضيف: "أما وقد انفجر الوضع بعد فضّ ساحة الاعتصام بالقوة، فلن يكون من السهل العودة إلى طاولة التفاوض".
من جانبه، يتساءل إبراهيم الصياد في "الحياة" اللندنية:"هل يقف السودان حقاً على فوهة بركان؟ سؤالٌ إذا كانت الإجابة عليه بنعم، فإننا نواجه خطراً يدفع العالم العربي إلى ضرورة التحرك بإيجابية لاحتواء هذه الأزمة، التي كان يمكن حلها في بداياتها، بمجرد سقوط البشير والحيلولة دون تصاعدها بالاتفاق على إعلاء مصلحة الشعب السوداني فوق كل اعتبار".
وتقول "القدس العربي" اللندنية في افتتاحيتها إن عملية فض جموع المعتصمين من قبل قوات الدعم السريع التي يرأسها الفريق أول محمد حمدان دقلو (المعروف أيضا بلقب حميدتي) "لم تنته فصولها بعد".
وتضيف: "عملية السيطرة الهمجية على مواقع الاعتصام في الخرطوم والمدن الأخرى... وراءها حركة سياسية تغطيها السعودية والإمارات ومصر، لتمكين حميدتي، رجلهم الأول، وتحويل السودان كلّه إلى إقليم دارفور جديد".
يقول إبراهيم محمد الهنقاري في "السودان اليوم" إنه "لا يكفي أن يعتذر" المجلس العسكري للشعب السوداني بعد مقتل العشرات أثناء فض الاعتصام بالقوة.
ويضيف: "المطلوب من الجيش السوداني أن يعود إلى ثكناته وأن يأمر شرطته العسكرية باعتقال وسجن كل من شارك في قتل المواطنين السودانيين الأبرياء أيا كانت رتبهم العسكرية وأيا كانت مسؤولياتهم داخل القوات المسلحة السودانية".
كما يقول: "ليست مهمة الجيش أي جيش أن يحكم. بل إن مهمة أي جيش و كل جيش هو الدفاع عن حدود الوطن وليس إطلاق النار على المواطنين وقتلهم كما لو أنهم هم المعتدون على حدود الوطن".
واهتمت صحيفتا "راكوبة" و "أخبار السودان" الالكترونيتان بموقف قوات الدعم السريع الذي يتهم قوى الحرية والتغيير بدعم ما وصفتها بعصابات منفلتة.
وتنقل صحيفة "راكوبة" عن اللواء عثمان محمد حامد، قائد العمليات في قوات الدعم السريع التي يقودها محمد حمدان حميدتي نائب رئيس المجلس العسكري، قوله إن "قوى الحرية والتغيير والحركات المسلحة تقف وراء العصابات المتفلتة، وتعمل على تنظيم تحركاتها بهدف نسب جرائمها إلى قوات الدعم السريع".
وحسب تصريحات حامد، التي نقلتها أيضا صحيفة "أخبار السودان"، فإن الهدف هو "تشويه سمعتها (قوات الدعم) أمام المواطنين، في إطار حملة منظمة لإبعادها من المشهد".
كما نشرت الصحيفتان تصريحات منسوبة إلى متحدث رسمي باسم الدعم السريع قال فيها إنه تم القبض على "مجموعة من العناصر المتفلتة في منطقة عد بابكر بضاحية شرق النيل". وقال إنها "تتألف من 11 عنصرا قامت بقتل أحد أفراد الجيش السوداني بطلق ناري".
ويقول مشاري الذايدي في "الشرق الأوسط" اللندنية إن ما يجري بالسودان حالياً "لا شك أنه محزن ومثير للانزعاج، كما أن سقوط أي قتيل أو جريح، من المدنيين أو العسكر، أمر لا يسرّ السودان ولا شعبه ولا من يحب أهل السودان ويريد لهم الخير.
ويضيف: "لسنا بحاجة إلى بلد جديد ينضم لركب الفوضى والحروب الأهلية التي خلفها ما يسمى الربيع العربي المسموم".